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बुधवार, 13 नवंबर 2013

तुम्हारी हार के पीछे ---निर्मला सिहं गौर की कविता

                    तुम्हारी हार के पीछे

तुम्हारी हार के पीछे  वजह शायद यही होगी
कि तुमने बात सच्ची, झूठे लोगों से कही होगी
सभी को एक निष्ठा का सबक सिखला दिया होगा
व्यवस्था को बदलने की पहल तुमने ही की होगी |

जहाँ पर आचरण, विश्वास और ईमान बिकते हों
सयाने भी जहाँ सच बात कहने में झिझकते हों
जहाँ पर दौड़ हो ऊंचाई पर जल्दी पहुंचने की
जहाँ सिद्दांतवादी लोग पैरों में कुचलते हों
तुम्हारी हार के पीछे वजह शायद यही होगी
तुम्हारी दौड़ में गिरते सवारों पर नजर होगी |

शहर के लोगों के सीने में जब दिल ही नहीं धडकें
उन्हें फिर प्रेम और संवेदना की क्या ज़रूरत है
तड़पता हो कोई या राह में मूर्छित पड़ा कोई
नज़र भर देखने तक की किसी को कहाँ फ़ुर्सत है
तुम्हारी हार के पीछे वजह शायद यही होगी
कि तुमने आंसुओं की अनकही भाषा पढ़ी होगी |

हवायें किस तरह लहरों को उंगली पर नचाती हैं
वही लहरें तो नन्हीं किश्ती को आखें दिखाती हैं
यही दस्तूरे-दुनिया देखते आये हैं सदियों से
कि जो कमज़ोर है उसको ही तो दुनिया सताती है
तुम्हारी हार के पीछे वजह शायद यही होगी
चिरागों की हिफाज़त तुमने तूफ़ानो की होगी |

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार को (14-11-2013) ऐसा होता तो ऐसा होता ( चर्चा - 1429 ) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चाचा नेहरू के जन्मदिवस बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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