यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 30 नवंबर 2013

तू वही है.....ग़ज़ल ....डा श्याम गुप्त ....



तू वही है.....ग़ज़ल


तू वही है 
तू वही है |

प्रश्न गहरा ,
तू कहीं है |

तू कहीं है
या नहीं है |

कौन कहता ,
तू नहीं है |

है भी तू,
है भी नहीं है |

जहाँ ढूंढो ,
तू वहीं है |

तू ही तू है,
सब कहीं  है |

जो कहीं है ,
तू वहीं है |

वायु जल थल ,
हर कहीं है |
  
' मैं' जहां है,    
'तू' नहीं है |

'तू' जहां है ,
'मैं' नहीं है |

प्रश्न का तो,
हल यही है |

तू ही तू है,
तू वही है |

मैं न मेरा,
सच यही है |

तत्व सारा,
बस यही है |

 मैं वही हूँ ,
तू वही है |

बसा हरसू ,
श्याम ही है |

श्याम ही है,
श्याम ही है ||








3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (01-112-2013) को "निर्विकार होना ही पड़ता है" (चर्चा मंचःअंक 1448)
    पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया गजल
    आभार आदरणीय डा. साहब

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद शास्त्रीजी , रविकर एवं कुलदीप जी ...आभार ..

    जवाब देंहटाएं

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...