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मंगलवार, 18 नवंबर 2014

त्रिपदा अगीत...डा श्याम गुप्त



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त्रिपदा अगीत--१६-१६ मात्राओं के तीन पदों वाला अतुकान्त गीत है जो अगीत कविता का एक छंद है---
 

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 अंधेरों की परवाह कोई,
 
करे, दीप जलाता जाए;
 
राह भूले को जो दिखाए |
     
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सिद्धि प्रसिद्धि सफलताएं हैं,
जीवन में लाती हैं खुशियाँ;
पर सच्चा सुख यही नहीं है|
     
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चमचों के मजे देख हमने ,
आस्था को किनारे रखदिया ;
दिया क्यों जलाएं हमीं भला|
    
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जग में खुशियाँ उनसे ही हैं,
हसीन चेहरे खिलते फूल;
हंसते रहते गुलशन गुलशन |
     
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मस्त हैं सब अपने ही घरों में ,
कौन गलियों की पुकार सुने;
दीप मंदिर में जले कैसे ?
६.
तुमसे मिलने की खुशी भी है ,
मिल पाने का गम भी;
कितने गम हैं जमाने में।
7.
खडे सडक इस पार रहे हम,
खडे सडक उस पार रहे तुम;
बीच में दुनिया रही भागती।
 ८.
कहके वफ़ा करेंगे सदा,
वो ज़फ़ा करते रहे यारो;
ये कैसा सिला है बहारो।


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