यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 22 जुलाई 2015

हिन्दी के विरुद्ध एक और षडयंत्र-----ड़ा श्याम गुप्त ....


                                            

 -----------हिन्दी के विरुद्ध एक और षडयंत्र-----
-----जिस प्रकार पुरा युग में संसार की समस्त भाषाओं का संस्कार कर के संस्कृत भाषा बनी थी जो विश्व भाषा हुई, उसी प्रकार समस्त भारतीय भाषाओं का समन्वय-संस्कार करके आज की हिन्दी बनी और देश में ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हुई |
---प्रारम्भ से ही हिन्दी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे जाते रहे हैं क्योंकि यह देश की सांस्कृतिक समन्वय की भाषा व पहचान बनती जारही है | दक्षिण भारत में हिन्दी विरोध , अपने ही मूल प्रदेश में , भोजपुरी, अवधी , ब्रजभाषा, उर्दू आदि बोलियों को हिन्दी से प्रथक रूप में अपनाने का षडयंत्र, जबकि ये सभी देश भर की बोलियाँ हिन्दी की ही बहनें हैं, हिन्दी में सम्मिलित हैं |
----- अब नीचे चित्र में समाचार देखिये ------ हम बड़े प्रसन्न एवं गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं कि एक विदेशी युवती हिन्दी में लिखती है, बात करती है , राजस्थानी सीख रही है ..परन्तु राजस्थानी को भाषा बताकर, उसे हिन्दी बहन होना नकारकर, राजस्थानी को भारत में न्याय न मिलने की बात फैला कर , हिन्दी, हिन्दू, हिन्स्तान की संस्कृति व देश के विरुद्ध सांस्कृतिक व राजनैतिक षडयंत्र की नीव डाली जा रही है ...मैकाले के षडयंत्र की भाँति..|
---हम सोचें व समझें ....|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...