यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य का एक नवगीत----- डा श्याम गुप्त ....

साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य का एक नवगीत----- 


बरस रहे मचल मचल यादों के घन |

कंपती है भादों की रात,
बतियाँ उर में शूल गयीं |
टेर उठी कान्हा की वंशी
सखियाँ सुध बुध भूल गयीं |


बहक रहा निश्वांसों का पागलपन ||

मोती ढरते आँखों से
चमकीली किरणों जैसे |
टूट गया मन का कंगन
आऊँ पास भला कैसे |

कंचनी फुहारों में परस गया तन ||

गुलाबांसों के फूल खिले,
फटा पड़ रहा नील कपास |
राग रागिनी तरुओं की
मंडराती कलियों के पास |

साँसों के घेरे में डूब गया मन |
बरस रहे मचल मचल यादों के घन ||

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...