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रविवार, 21 मई 2017

पुस्तक----ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद ------डा श्याम गुप्त-----

पुस्तक----ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद ------डा श्याम गुप्त-----
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प्रथम मन्त्र ..”ईशावास्यम इदं सर्वं यद्किंचित जगत्याम जगत |”
                   ”तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृध कस्यविद्धनम "

के तृतीय भाग ..”मा गृध कस्यविद्धनम." का काव्य-भावानुवाद......
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कुंजिका –मा गृध =लालच मत कर/ अपहरण मत कर ...कस्यविद्धनम = किसी के भी धन एवं स्वत्व का /किसी के भी/ किसका हुआ है ..धनं = धन की /यह धन...|
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मूलार्थ -किसी के भी धन व स्वत्व का अपहरण व लालच मत करो | यह धन किसी का नहीं हुआ है |
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किसी के धन की सम्पति श्री की,
इच्छा लालच हरण नहीं कर |
रमा चंचला कहाँ कब हुई ,
किसी एक की सोच अरे नर !

धन वैभव सुख सम्पति कारण,
ही तो द्वेष द्वंद्व होते हैं|
छीना-झपटी, लूट हरण से,
धन वैभव सुख कब बढ़ते हैं |

अनुचित कर्म से प्राप्त सभी धन,
जो कालाधन कहलाता है |
अशुभ अलक्ष्मी वास करे गृह,
मन में दैन्य भाव लाता है |

शुचि भावों कर्मों को प्राणी,
मन से फिर बिसराता जाता |
दुष्कर्मों में रत रहकर नित,
पाप-पंक में धंसता जाता |

यह शुभ ज्ञान जिसे हो जाता,
शुभ-शुचि कर्मों को अपनाता |
ज्ञानमार्ग युत जीवन-क्रम से,
मोक्ष मार्ग पर चलता जाता ||

-----क्रमश :----द्वतीय मन्त्र का काव्यभावानुवाद -----

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-05-2017) को
    मैया तो पाला करे, रविकर श्रवण कुमार; चर्चामंच 2635
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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